उत्तराखंड में हर महीने हो रही एक बाघ की मौत..
उत्तराखंड : उत्तराखंड में बाघों की मौत के मामलों पर गौर करें तो पिछले साल 13 बाघों की प्राकृतिक मौत हुई थी। शिकार के बाद एक बाघ की खाल चंपावत जिले में बरामद हुई थी।उत्तराखंड में हर महीने औसतन एक बाघ की मौत हो रही है। इसमें शिकार के मामले भी शामिल हैं। पिछले साल चंपावत जिले में एक बाघ की खाल बरामद हुई थी। इस साल हरिद्वार जिले में बाघ की दो खाल पकड़ी जा चुकी हैं।
वन्यजीव संरक्षण को लेकर कार्य करने वाली संस्था वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्लूपीएसआई) के प्रोग्राम मैनेजर टीटो जोजफ कहते हैं कि उत्तराखंड में बाघों की मौत के मामलों पर गौर करें तो पिछले साल 13 बाघों की प्राकृतिक मौत हुई थी। शिकार के बाद एक बाघ की खाल चंपावत जिले में बरामद हुई थी। इस साल भी पांच बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें दो खालें हरिद्वार जिले में बरामद हुई हैं। संस्था के प्रदेश में प्रोजेक्ट मैनेजर राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि वन विभाग को और संजीदा होने के साथ शिकारियों के नेटवर्क को पूरी तरह ध्वस्त करने की जरूरत है।
स्पेशल कॉर्बेट टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की योजना फाइलों में..
बाघों के संरक्षण के लिए करीब दस साल पहले स्पेशल कॉर्बेट टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनाने की योजना बनी थी। बताते हैं कि इस फोर्स पर आने वाले खर्च का वहन भी एनटीसीए को करना था। फोर्स के लिए काफी कागजी कार्रवाई हुई लेकिन अब तक योजना धरातल पर उतर नहीं सकी है।
ब्योरा तैयार करने में जुटा जंगलात..
टाइगर रिजर्व के अलावा बड़ी संख्या में बाघ पश्चिमी वृत्त के अधीन आने वन प्रभागों में भी हैं। यह सवा सौ से अधिक बाघ हैं। मुख्य वन संरक्षक पीके पात्रो कहते हैं कि वृत्त में बड़ी संख्या में बाघ हैं। इनके संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए नए सिरे से प्लान बनाने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है। संरक्षण के लिए संसाधनों को बढ़ाया जाएगा।
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