भगवान बद्रीनाथ को चढ़ने वाली बद्री तुलसी की होगी खेती..
किसानों को जल्द दी जाएगी पौध..
उत्तराखंड: गढ़वाल विवि के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग ने विलुप्त होती बद्री तुलसी (वन तुलसी) के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में ठोस पहल की है। विवि के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग ने टिहरी जिले के सुनाहरीगाढ़ में बद्री तुलसी की पौधशाला तैयार की है जहां तैयार 10 हजार पौधे जल्द किसानों को दिए जाएंगे। बद्रीनाथ धाम के समीप माणा, पांडुकेश्वर, बामणी, छेनगांव और मराज गांव से सटे क्षेत्र में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली बद्री तुलसी की लकड़ी की माला भगवान बद्रीनाथ को चढ़ाई जाती है लेकिन अव्यवहारिक विदोहन के चलते यह विलुप्ति के कगार पर है।
आपको बता दे कि बद्री तुलसी के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे गढ़वाल विश्वविद्यालय के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग ने प्रयास तेज कर दिए हैं। इसके लिए टिहरी जिले के सुनाहरीगाढ़ के समीप तैयार 10 हजार बद्री तुलसी की पौध तैयार की है जिसे किसानों को बांटा जाएगा। औषधीय गुणों से भरपूर बद्री तुलसी का वानस्पतिक नाम ओरेगेनम ब्लगार है। इसका उपयोग चर्मरोग, डायबिटीज, सिर दर्द, फंगल संक्रमण, कफ खासी आदि रोगों में इसका सेवन लाभदायक है।
बद्री तुलसी से सुधरेगी आर्थिकी..
बद्री तुलसी से बनने वाली माला 100-150 रुपये तक आसानी से बिक जाती है। इसके पाउडर और तेल की भी बाजार में बहुत डिमांड है। प्रो. जितेंद्र बुटोला का कहना हैं कि इसके ब्रांडिंग पर भी काम किया जाएगा। एक शोध में पाया गया है कि बद्री तुलसी अन्य तुलसी के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक कार्बन सोखने में सक्षम है जिससे इसे पर्यावरण की दृष्टि से फायदेमंद मानते हुए शोध जारी है। डाॅ. जितेंद्र कुमार बुटोला ने कहा कि इसके हर पहलू पर शोध किया जा रहा है।बद्री तुलसी की व्यवसायिक खेती करने के लिए जल्द शिविर लगाकर किसानों की इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। औषधीय गुणों की जानकारी और इसकी खेती के जरिए आर्थिकी सुधारने के टिप्स भी किसानों को दिए जाएंगे।
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