June 28, 2025

हरिद्वार जमीन घोटाला- पहले चरण में नगर निगम के 5 अफसरों पर गिरी गाज, सेवा विस्तार भी हुआ खत्म..

हरिद्वार जमीन घोटाला- पहले चरण में नगर निगम के 5 अफसरों पर गिरी गाज, सेवा विस्तार भी हुआ खत्म..

 

 

उत्तराखंड: धामी सरकार ने बहुचर्चित हरिद्वार जमीन घोटाले में बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई करते हुए दो IAS, एक PCS अधिकारी सहित कुल 12 अफसरों को निलंबित कर दिया है। जिन अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है, उनमें हरिद्वार के मौजूदा जिलाधिकारी (DM), उपजिलाधिकारी (SDM) और पूर्व नगर आयुक्त भी शामिल हैं। सरकार ने इन सभी पर गंभीर अनियमितताओं और भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाने के आरोपों के तहत कार्रवाई की है। अब मामले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंप दी गई है, जो पूरे घोटाले की परत-दर-परत जांच करेगी। बताया जा रहा है कि सरकारी जमीन के हेरफेर और दस्तावेजों में गड़बड़ी कर करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया गया। सरकार की इस कड़ी कार्रवाई को ‘भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस’ नीति से जोड़कर देखा जा रहा है।

मामला लगभग 15 करोड़ रुपये की एक अनुपयुक्त सरकारी भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने से जुड़ा है। यह भूमि न तो तत्काल आवश्यक थी और न ही इसकी खरीद के पीछे कोई स्पष्ट उद्देश्य बताया गया। इसके बावजूद हरिद्वार नगर निगम ने यह भूमि बाजार दर से कहीं अधिक दाम पर खरीद ली। सूत्रों के अनुसार न केवल भूमि की स्थिति अनुपयोगी थी, बल्कि खरीद प्रक्रिया में भी पारदर्शिता नहीं बरती गई। शासन के तय नियमों और प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए इस लेनदेन को अंजाम दिया गया। अब इस पूरे मामले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंप दी गई है, जो यह पता लगाएगा कि किन स्तरों पर नियमों का उल्लंघन हुआ और किसने व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग किया। माना जा रहा है कि आगे और भी नामों की जांच के दायरे में आने की संभावना है।

उत्तराखंड के बहुचर्चित हरिद्वार जमीन घोटाले में जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद धामी सरकार ने तत्काल बड़ी कार्रवाई की है। रिपोर्ट मिलते ही शासन ने हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह को सस्पेंड कर दिया है। इसके साथ ही अन्य अधिकारियों में वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, कानूनगों राजेश कुमार, तहसील प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की को भी निलंबित कर दिया गया है। इस कार्रवाई में कुल 12 अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं, जिन पर घोटाले में संलिप्तता और लापरवाही के गंभीर आरोप हैं। मामला 15 करोड़ रुपये की कम मूल्य की भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने से जुड़ा है, जिसमें हरिद्वार नगर निगम द्वारा एक अनुपयुक्त और गैर-जरूरी भूमि को बिना पारदर्शिता के अत्यधिक कीमत पर खरीदा गया। यह पूरी प्रक्रिया शासन के नियमों को दरकिनार कर अंजाम दी गई।

हरिद्वार जमीन घोटाले में सीएम पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिए गए कड़े निर्णय केवल एक वित्तीय अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि राज्य के प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई परंपरा की शुरुआत का संकेत माने जा रहे हैं। उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में कार्यरत शीर्ष अधिकारियों पर सीधे और कठोर प्रहार किया है। धामी सरकार की इस कार्रवाई को सिर्फ एक भ्रष्टाचार विरोधी कदम नहीं, बल्कि “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” नीति की सख्त व्याख्या के रूप में देखा जा रहा है। प्रशासनिक गलियारों में इसे एक कड़ा और साहसिक निर्णय माना जा रहा है, जो भविष्य में अधिकारियों की कार्यशैली और जवाबदेही की दिशा को तय कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला राज्य में “अदृश्य लेकिन प्रभावशाली तंत्र” के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश है कि अब कोई भी पद और रुतबा जांच और सजा से परे नहीं रहेगा। पहले चरण में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को भी सस्पेंड किया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।