
वित्तीय अनुशासन और सुधार के प्रयासों में उत्तराखंड सही दिशा में- डॉ. अरविंद पनगढ़िया..
उत्तराखंड: उत्तराखंड के दौरे पर आए 16वें वित्त आयोग ने राज्य की वित्तीय स्थिति और प्रबंधन की सराहना की है। आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया का कहना हैं कि यदि किसी विकासशील राज्य में राजकोषीय घाटा संतुलित है, तो इसे लेकर घबराने की जरूरत नहीं होती। ज़रूरी यह है कि घाटा अत्यधिक न बढ़े और उस पर नियंत्रण बना रहे। डॉ. पनगढ़िया ने देहरादून में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों के लिए वित्तीय प्रबंधन एक चुनौती जरूर है, लेकिन राज्य सरकार ने राजस्व और व्यय के संतुलन को बेहतर तरीके से बनाए रखा है। वित्त आयोग के इस दौरे का उद्देश्य राज्यों की वित्तीय आवश्यकताओं और चुनौतियों को समझना और आगामी पंचवर्षीय वित्तीय ढांचे में संसाधनों के बंटवारे को लेकर संतुलित सुझाव देना है। आयोग ने राज्य से जुड़े कई मुद्दों जैसे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की लागत, बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की चुनौतियों पर भी चर्चा की। उत्तराखंड सरकार ने राज्य के लिए विशेष सहायता की भी मांग की।
उत्तराखंड के वित्तीय प्रबंधन और सुधार प्रयासों को लेकर 16वें वित्त आयोग ने सकारात्मक रुख दिखाया है। सोमवार को सचिवालय के मीडिया सेंटर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि राज्य वित्तीय चुनौतियों को लेकर सजग है और उन्हें दूर करने के लिए सही दिशा में कदम उठा रहा है। डॉ. पनगढ़िया का कहना हैं कि उत्तराखंड अपनी आय बढ़ाने को लेकर गंभीर प्रयास कर रहा है, और इसमें आगे और सुधार की पूरी गुंजाइश है। राज्य सरकार राजकोषीय अनुशासन बनाए हुए है, जो सराहनीय है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि राजकोषीय घाटा संतुलित और नियंत्रित है, तो यह विकासशील राज्य के लिए चिंता का विषय नहीं होता, बल्कि जरूरी है कि घाटा अत्यधिक न बढ़े और सरकार उस पर नियंत्रण बनाए रखे।
बैठक के दौरान उत्तराखंड सरकार ने आयोग के समक्ष पर्वतीय राज्यों की विशिष्ट समस्याएं जैसे प्राकृतिक आपदाओं का उच्च जोखिम, बुनियादी ढांचे की लागत और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की जटिलताएं रखीं और इनके आधार पर अधिक वित्तीय सहयोग की मांग की। उनका कहना हैं कि उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय देश के औसत से ऊपर है, और इसे और भी बेहतर किया जा सकता है। वहीं, जब हिमालयी राज्यों की जरूरतों पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अब तक के तमाम वित्त आयोगों ने पर्वतीय राज्यों की भौगोलिक जटिलताओं को समझते हुए खास व्यवस्थाएं बनाई हैं।
कर वितरण का तर्क और फॉर्मूला बताया
डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने स्पष्ट किया है कि केंद्र और राज्यों के बीच करों के वितरण की प्रक्रिया पूर्णतः संवैधानिक है, और यह निर्णय वित्त आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों और फॉर्मूले के आधार पर किया जाता है। सोमवार को देहरादून सचिवालय के मीडिया सेंटर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार करों की साझा आय का वितरण कैसे किया जाए, यह तय करने की जिम्मेदारी पूरी तरह वित्त आयोग की होती है। आयोग यह सुनिश्चित करता है कि वितरण प्रक्रिया न्यायसंगत हो और राज्यों की वित्तीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो। उन्होंने कहा कि आयोग ने इसके लिए जो मापदंड तय किए हैं, उनमें राज्यों के प्रदर्शन और जरूरतों को ध्यान में रखा गया है। इनमें कम प्रजनन दर वाले राज्यों के लिए 12.5% वेटेज, राज्यों की आय में अंतर को 45%, जनसंख्या और क्षेत्रफल को 15-15%, जंगल और पर्यावरण के लिए 10% और टैक्स व फाइनेंशियल मैनेजमेंट को 2.5% वेटेज दिया गया है।
स्थानीय निकायों को लेकर भी दिया भरोसा
स्थानीय निकायों और पंचायतों को मिलने वाले फंड को लेकर डॉ. पनगढ़िया ने कहा कि बजट आवंटन के दौरान इन इकाइयों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है, लेकिन इसका प्रभावी उपयोग राज्यों की जिम्मेदारी है। केवल बजट देना पर्याप्त नहीं है, उसकी निगरानी और क्रियान्वयन भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने माना कि पर्वतीय राज्यों की भौगोलिक जटिलताओं को लेकर सभी वित्त आयोगों ने विशेष व्यवस्थाएं बनाई हैं और इस आयोग की सिफारिशें भी इन्हीं अनुभवों और आवश्यकताओं पर आधारित होंगी।
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