
203 करोड़ की योजना अधर में, प्रयुक्त जल प्रबंधन बना विभागीय लापरवाही का शिकार..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में प्रयुक्त जल प्रबंधन को लेकर बड़ा कुप्रबंधन सामने आया है। स्वच्छ भारत मिशन (SBM) 2.0 के तहत केंद्र सरकार से मिले ₹203 करोड़ के बजट के बावजूद अब तक एक भी परियोजना धरातल पर नहीं उतर पाई है। वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने स्वच्छता को और मजबूती देने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में प्रयुक्त जल के सुरक्षित निष्पादन और पुनः उपयोग के लिए राज्यों को बजट जारी किया गया था। उत्तराखंड को भी इस योजना के अंतर्गत विशेष श्रेणी में शामिल करते हुए बजट प्रदान किया गया था। हालांकि शहरी विकास विभाग को यह बजट मिले तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन न तो कोई ठोस कार्ययोजना बनाई गई और न ही किसी परियोजना को अमलीजामा पहनाया जा सका। विभागीय लापरवाही और प्रशासनिक अनदेखी के कारण राज्य में प्रयुक्त जल के निस्तारण की व्यवस्था बेहद कमजोर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रयुक्त जल का समुचित प्रबंधन न होने से नदी-नालों में सीवेज मिल रहा है, जिससे पर्यावरणीय संकट गहराता जा रहा है। साथ ही, जनस्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सरकार की मंशा भले ही स्वच्छता और जल संरक्षण की हो, लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन न होना, नीति और प्रशासनिक समन्वय पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जानकारों का कहना है कि यदि समय रहते सुधार नहीं किया गया, तो केंद्र द्वारा आवंटित बजट लौटा दिया जा सकता है या आगामी किस्तों में कटौती की आशंका बन सकती है।
स्वच्छ भारत मिशन (SBM) 2.0 के तहत शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल प्रबंधन को लेकर उत्तराखंड में गंभीर लापरवाही सामने आई है। योजना के तहत केंद्र से 203 करोड़ रुपये का बजट मिलने के बावजूद शहरी विकास विभाग अब तक एक भी परियोजना शुरू नहीं कर सका है। SBM 2.0 का एक प्रमुख घटक प्रयुक्त जल प्रबंधन है। इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल का प्रभावी उपचार और पुनः उपयोग सुनिश्चित करना है। योजना के अंतर्गत सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) से निकलने वाले उपचारित जल का इस्तेमाल सड़कों की सफाई, निर्माण कार्यों, बागवानी और अन्य गैर-पीने योग्य कार्यों में किया जाना था। परंतु बजट जारी होने के तीन साल बाद भी न तो कोई सीवर जल पुनः उपयोग की परियोजना प्रारंभ हो सकी है, न ही कोई ठोस कार्ययोजना सार्वजनिक की गई है। सूत्रों के अनुसार परियोजनाओं की स्वीकृति, टेंडर प्रक्रिया, भूमि चयन और विभागीय समन्वय की कमी के चलते यह योजना कागज़ों से आगे नहीं बढ़ सकी। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से चिंताजनक है, बल्कि शहरी स्वच्छता मिशन की प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीवेज ट्रीटमेंट के अभाव में उपचारित जल सीधे नदियों और नालों में मिल रहा है, जिससे जल स्रोतों का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। वहीं, पुनः उपयोग न हो पाने के कारण जल संकट और शहरी स्वच्छता की चुनौतियां और गहरी हो रही हैं।
शहरी विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक पेयजल निगम के माध्यम से आठ शहरों के लिए 151.41 करोड़ रुपये की छह डीपीआर तैयार की गई हैं। इन रिपोर्टों को केंद्र सरकार को भेजने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अब तक केंद्र से किसी प्रकार की स्वीकृति या प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 2021 में शुरू हुआ SBM 2.0 वर्ष 2026 में समाप्त हो जाएगा। ऐसे में परियोजना की स्वीकृति, निविदा प्रक्रिया, निर्माण और संचालन जैसे चरणों को पूरा करने के लिए अब बहुत कम समय बचा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो एक साल में सिर्फ निविदा प्रक्रिया ही पूरी हो पाएगी, जिससे वास्तविक कार्य शुरू होने से पहले ही योजना की समयसीमा समाप्त हो सकती है। राज्य को प्रयुक्त जल प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार से 203 करोड़ रुपये का बजट मिला था। लेकिन यदि परियोजनाएं समय पर स्वीकृत नहीं होतीं और कार्य प्रारंभ नहीं होता, तो केंद्र सरकार द्वारा यह राशि वापस मांगी जा सकती है। यह स्थिति न केवल वित्तीय दृष्टि से नुकसानदायक होगी, बल्कि शहरी जल प्रबंधन की दिशा में एक बड़ा अवसर भी हाथ से निकल जाएगा। SBM 2.0 के तहत प्रयुक्त जल को सड़क सफाई, निर्माण कार्यों, बागवानी आदि में दोबारा इस्तेमाल करने की योजना थी। लेकिन योजना निर्माण, क्रियान्वयन और प्रशासनिक प्रक्रिया के बीच तालमेल की कमी इस महत्वाकांक्षी मिशन की राह में सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आई है।
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