अंधेरी सुरंग में 400 घंटे, कभी धैर्य डगमगाया, कभी बहे आंसू, फिर हौसले से जीती जंग..
उत्तराखंड: गुजर जाएगा ये मुश्किल वक्त भी बंदे, तू थोड़ा इत्मिनान तो रख। कहते हैं न कि अगर हम धैर्य रखे तो बड़ी से बड़ी से परेशानी भी घुटने टेकती हैं। ऑपरेशन टनल की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र भी धैर्य ही था। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने भी तालमेल के साथ धैर्य का परिचय दिया। पूरी दुनिया की नजरें 17 दिनों से उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा पर टिकी थीं। मजदूरों को बाहर निकालने के कई प्लान बने और जब-जब फेल हुए तो सरकार असहज जरूर दिखी, लेकिन कहीं न कहीं धैर्य बनाए रखा।
दीपावली के दिन जहां देश में लोगों के घर रोशनी से जगमगा रहे थे, वहीं अचानक 41 परिवारों के आगे अंधेरा छा जाने की खबरें सामने आईं थी। 17 दिनों में न तो सिलक्यारा की सुरंग फंसे 41 मजदूरों ने धैर्य छोड़ा और न ही उन्हें बाहर निकालने वालों ने। इस ऑपरेशन को कई बार हताशा, निराशा ने आकर घेरा इसके बावजूद बाहर से अंदर और अंदर से बाहर के लोगों को धैर्य का छोटा सा सुराख रोशन रखे रहा।
श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए जिस ऑगर मशीन से शुरुआत की गई आखिर में उसी राह से उन्हें बाहर निकाला गया। पूरे ऑपरेशन में ऑगर कई बार रुकी, सुरंग में कंपन हुआ, सुरंग में उलझ गए मशीन के कई पार्ट काटकर निकालने पड़े, लेकिन विशेषज्ञ डटे रहे और धैर्य बनाए रखा। कुछ दिनों की मशक्कत के बाद उन्हें उम्मीद हो गई थी कि सबसे सुरक्षित राह यही है। वर्टिकल ड्रिलिंग और टनल के दूसरे छोर को भी खोलने की कवायद शुरू हुई। जब ऑगर ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया तो इसे उन रैट माइनर्स का साहस और धैर्य ही माना जाएगा जिनके हाथों ने उसी पाइप में दिन रात मैनुअल ड्रिलिंग कर 41 परिवारों में उजियारा फैला दिया। एक लंबे इंतजार के बाद श्रमिकों के बाहर आने पर परिजनों का खुशी का ठिकाना नहीं है। परिजनों के खुशी के आंसू छलक उठे हैं। इसके साथ ही इतने दिनों से रेस्क्यू में जुटी टीम और तमाम अधिकारियों के चेहरे पर भी खुशी साफ-साफ देखी जा सकती है।
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