April 16, 2025

सिरोहबगड़ की भूस्खलन समस्या के स्थायी समाधान की तैयारी शुरू..

सिरोहबगड़ की भूस्खलन समस्या के स्थायी समाधान की तैयारी शुरू..

चारधाम यात्रियों को मिलेगी राहत..

 

 

उत्तराखंड: श्रीनगर-रुद्रप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच स्थित सिरोहबगड़ भूस्खलन क्षेत्र की समस्या का अब स्थायी समाधान तलाशा जा रहा है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए टीएचडीसी ने क्षेत्र का तकनीकी और भूवैज्ञानिक अध्ययन शुरू कर दिया है। अध्ययन के बाद इलाके के स्थिरीकरण और ट्रीटमेंट के लिए आवश्यक सुझाव दिए जाएंगे। टीएचडीसी द्वारा किए जा रहे सर्वेक्षण और विश्लेषण के आधार पर अगले दो महीनों में रिपोर्ट तैयार होने की संभावना है। रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) आगे की कार्यवाही करेगा। आपको बता दे कि सिरोहबगड़ लंबे समय से एक संवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र रहा है, जहां मानसून समेत सामान्य दिनों में भी सड़क पर मलबा और पत्थरों के गिरने की घटनाएं आम हैं। इससे न केवल यातायात बाधित होता है, बल्कि जानमाल का खतरा भी बना रहता है। स्थानीय प्रशासन और यात्री लंबे समय से इस समस्या के समाधान की मांग कर रहे थे।

बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्रा करने वाले लाखों श्रद्धालु श्रीनगर-रुद्रप्रयाग से आवागमन करते हैं। इन दोनों जगहों के मध्य में सिरोहबगड़ जगह है, जहां पर करीब तीन दशक से भूस्खलन की समस्या है, राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सिरोहबगड़ भूस्खलन क्षेत्र की पुरानी समस्या का अब स्थायी समाधान निकाला जाएगा। क्षेत्र में तीन दशक से अधिक समय से लगातार भूस्खलन की स्थिति बनी हुई है, जिससे चारधाम यात्रा के दौरान यातायात बार-बार बाधित होता रहता है। श्रद्धालु जब श्रीनगर से रुद्रप्रयाग होते हुए यात्रा पर निकलते हैं, तो सिरोहबगड़ नामक स्थान पर अक्सर मलबा और पत्थरों के कारण घंटों ट्रैफिक जाम झेलना पड़ता है। इस संवेदनशील क्षेत्र में यात्रा को सुचारू बनाए रखने के लिए जेसीबी मशीनों को लगातार तैनात रखना पड़ता है, ताकि रास्ता हर समय चालू रह सके। अब इस स्थायी समस्या के निवारण के लिए टीएचडीसी ने पहल की है। संस्था ने क्षेत्र का भू-तकनीकी और स्थायित्व अध्ययन शुरू कर दिया है, जिसकी रिपोर्ट दो महीनों के भीतर तैयार होने की उम्मीद है।

स्थित सिरोहबगड़ भूस्खलन क्षेत्र जो कि करीब 70 मीटर लंबाई में फैला हुआ है, अब तीन दशक बाद स्थायी समाधान की ओर बढ़ रहा है। हर साल चारधाम यात्रा के दौरान यहां पर मलबा गिरने और चट्टानों के खिसकने से यातायात बाधित होता है। अब इस समस्या से स्थायी निजात पाने के लिए टीएचडीसी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। टीएचडीसी के विशेषज्ञों ने प्रारंभिक सर्वेक्षण पूरा कर लिया है, और अब वे क्षेत्र का विस्तृत भू-तकनीकी अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन के बाद सुरक्षात्मक उपायों पर आधारित एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसे दो महीनों के भीतर प्रस्तुत किया जाना प्रस्तावित है। टीएचडीसी द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट में भूस्खलन को रोकने के लिए आवश्यक सुरक्षात्मक ट्रीटमेंट, जैसे रिटेनिंग वॉल, बोल्डर नेटिंग, वाटर ड्रेनेज सिस्टम और अन्य इंजीनियरिंग समाधान सुझाए जाएंगे। इसके आधार पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) मरम्मत और स्थिरीकरण का कार्य शुरू करेगा।