गांव माणा में ग्रामीणों से संवाद करेंगे पीएम मोदी..
उत्तराखंड: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के अंतिम गांव माणा के लोगों से संवाद करेंगे। इसे लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह है। गांव की महिलाओं ने प्रधानमंत्री से पूछने के लिए कुछ सवाल भी तैयार किए हैं। आत्मनिर्भर माणा गांव के लोग प्रधानमंत्री के स्वागत की खास तैयारियों में जुटे हैं। गांव की माया मोल्फा का कहना है कि रोजगार की उम्मीद में शिक्षित युवा बेरोजगार घूम रहे हैं।
प्रधानमंत्री से रोजगार के बारे में पूछेंगे। 77 साल की नंदी देवी का कहना है कि गांव में संचार, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा नहीं है। गांव में अस्पताल नहीं होने से सिरदर्द की गोली के लिए भी बद्रीनाथ जाना पड़ता है। गांव में बच्चों के लिए स्कूल की सुविधा नहीं है
जिससे युवा पीढ़ी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरी क्षेत्रों में ही बस गई है। संचार सेवा के लिए गांव में भारत ब्रॉडबैंड इंडिया लिमिटेड (बीबीआईएल) की ओर से ग्रामीणों को टेलीफोन दिए गए थे लेकिन उन्होंने अब काम करना बंद कर दिया है। इससे ग्रामीणों को एक फोन करने के लिए एक किमी दूर जाना पड़ता है। गांव में प्राथमिक विद्यालय तक नहीं है।
अलग हैं सांस्कृतिक विरासत..
आपको बता दे कि समुद्रतल से 10227 फीट की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के किनारे बसे माणा गांव में भोटिया जनजाति के करीब 150 परिवार निवास करते हैं। यह गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों से भी अपनी अलग पहचान रखता है। गांव की महिलाएं ऊन का लव्वा ( ऊन की धोती) और अंगुड़ी (ऊन का बिलाउज) पहनती हैं। यहां की महिलाएं हर वक्त अपने सिर को कपड़े से ढककर रखती हैं। किसी भी सामूहिक आयोजन में महिलाएं और पुरुष समूह में पौणा व झुमेलो नृत्य आयोजित करते हैं।
स्वरोजगार की मिसाल..
माणा गांव के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय हाथ और मशीन से ऊनी वस्त्रों का निर्माण करना है। शीतकाल में ग्रामीण भेड़-बकरियों की ऊन निकालकर उनकी कताई करते हैं और तकली या मशीन से उसके तागे बनाते हैं। इसके बाद वे टोपी, जुराब, हाथ के दस्ताने, कोट, शॉल, दन्न, मफलर आदि उत्पाद तैयार करते हैं।
ग्रामीण आलू, राई, गोभी का भी अच्छा उत्पादन करते हैं। यात्राकाल में बद्रीनाथ धाम के दर्शनों को पहुंचने वाले तीर्थयात्री माणा गांव के सैर-सपाटे पर पहुंचते हैं और गांव में ऊनी वस्त्रों की खरीदारी करते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण औषधीय उत्पादों की बिक्री भी करते हैं। नवंबर से अप्रैल तक ठंड बढ़ने से ग्रामीण जनपद के निचले क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसके बाद मई से अक्तूबर तक वे दोबारा अपने पैतृक गांव में रहते हैं।
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