कफ सिरप डोज की लापरवाही ने पहुंचाया कोमा तक, 12 दिन बाद बची 3 साल की बच्ची की जान..
उत्तराखंड: राजधानी देहरादून से एक बेहद गंभीर और चेतावनी देने वाला मामला सामने आया है, जहां गलत कफ सिरप और उसकी ओवरडोज के कारण 3 साल की मासूम बच्ची गर्विका कोमा में चली गई। हालांकि चिकित्सकों की एक विशेषज्ञ टीम ने लगातार 12 दिनों तक चले इलाज के बाद बच्ची की जान बचाने में सफलता हासिल की। आपको बता दे कि तीन साल की गर्विका को खांसी, बुखार और सर्दी-जुकाम की शिकायत थी। परिजन उसे इलाज के लिए एक स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए। वहां डॉक्टर ने बच्ची को डेक्सामिथार्पन (Dextromethorphan) कफ सिरप लेने की सलाह दी, जो कि चार वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए निर्धारित होता है। बताया गया कि बच्ची को लगभग 40 से 50 मिलीलीटर सिरप की ओवरडोज दे दी गई, जिसके कुछ ही समय बाद उसकी तबीयत तेजी से बिगड़ने लगी। बच्ची को चक्कर आने लगे, वह सुस्त हो गई और थोड़ी देर में बेहोशी की हालत में चली गई, जिसके बाद उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया।
अस्पताल में जांच के दौरान डॉक्टरों ने पाया कि डेक्सामिथार्पन सिरप की अधिक मात्रा के कारण बच्ची की नर्वस सिस्टम पर गंभीर असर पड़ा, जिससे वह कोमा में चली गई थी। इसके बाद बच्ची को आईसीयू में भर्ती कर निरंतर निगरानी और विशेष चिकित्सा उपचार दिया गया। डॉक्टरों की टीम ने कहा कि यह मामला बेहद नाजुक था, लेकिन समय पर सही इलाज, वेंटिलेटरी सपोर्ट और दवाओं के जरिए लगभग 12 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद बच्ची की हालत में सुधार हुआ और आखिरकार उसे कोमा से बाहर लाया जा सका। फिलहाल बच्ची की स्थिति स्थिर बताई जा रही है और वह धीरे-धीरे स्वस्थ हो रही है।
इस घटना के बाद स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अभिभावकों को कड़ी चेतावनी दी है कि बच्चों को किसी भी प्रकार की दवा बिना योग्य बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह के न दें। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की उम्र, वजन और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार दवाओं की मात्रा तय होती है, और मामूली लापरवाही भी जानलेवा साबित हो सकती है। डॉक्टरों ने यह भी कहा कि खांसी-जुकाम जैसी सामान्य लगने वाली बीमारियों में भी गलत दवा या गलत डोज गंभीर परिणाम ला सकती है, इसलिए स्वयं दवा देने या झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे इलाज कराने से बचना चाहिए।
जानकारी के अनुसार गर्विका को शुरुआत में श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसे तीन दिन तक उपचार दिया गया। हालत में अपेक्षित सुधार न होने पर बच्ची को दून अस्पताल के पीकू (PICU) वार्ड में रेफर किया गया। दून अस्पताल में उसकी स्थिति बेहद नाजुक बनी रही और डॉक्टरों को उसे चार दिनों तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ा। दून अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञों की एक अनुभवी टीम ने बच्ची का इलाज किया। इस टीम में डॉ. तन्वी सिंह, डॉ. आयशा इमरान, डॉ. आस्था भंडारी और डॉ. कुलदीप शामिल थे, जिन्होंने निरंतर निगरानी और समन्वित उपचार के जरिए बच्ची की जान बचाई। चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की दिन-रात की मेहनत के चलते गर्विका की हालत में धीरे-धीरे सुधार हुआ। चिकित्सकों के अनुसार बच्ची की हालत स्थिर होने पर उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
फिलहाल वह पूरी तरह होश में है और सामान्य गतिविधियों की ओर लौट रही है। दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक (एमएस) डॉ. आर.एस. बिष्ट ने इस मामले को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए कहा कि डेक्सामिथार्पन सिरप चार साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह दवा नर्वस सिस्टम पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है, जिससे बेहोशी, सांस संबंधी परेशानी और कोमा जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। गर्विका की हालत भी इसी कारण गंभीर हुई थी।डॉ. बिष्ट ने कहा कि समय पर सही इलाज, विशेषज्ञ डॉक्टरों की सतर्कता और नर्सिंग स्टाफ की मेहनत के चलते बच्ची की जान बचाई जा सकी। उन्होंने अभिभावकों से अपील की कि बच्चों को किसी भी प्रकार की दवा बिना योग्य चिकित्सक या बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह के न दें और दवा की उम्र व डोज से जुड़ी जानकारी को गंभीरता से लें।
वही बाल रोग विभाग के एचओडी डॉ. अशोक कुमार ने स्पष्ट कहा कि बच्चों को किसी भी प्रकार की दवा केवल विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह पर ही दी जानी चाहिए। इंटरनेट, सोशल मीडिया या मेडिकल स्टोर से मिली सलाह के आधार पर दवा देना बच्चों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, विशेषकर तब जब बच्चा कम उम्र का हो। डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि बच्चों की उम्र, वजन और शारीरिक स्थिति के अनुसार दवाओं की मात्रा तय होती है। गलत दवा या गलत डोज सीधे तौर पर नर्वस सिस्टम, सांस लेने की प्रक्रिया और मस्तिष्क पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है, जिससे कोमा जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।उन्होंने कहा कि बच्चों को सिरप देने से जुड़ी लगातार सामने आ रही गंभीर घटनाओं को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग और औषधि नियंत्रक (ड्रग कंट्रोलर) ने पहले ही ऐसे कई कफ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिन्हें बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता।
इनमें डेक्स्ट्रोमेथोर्फन और फिनाइलफ्राइन युक्त कफ सिरप प्रमुख रूप से शामिल हैं।डॉ. कुमार ने यह भी जानकारी दी कि बच्चों में दवाओं के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए राज्य सरकार ने पैरासिटामोल सिरप को भी केवल डॉक्टर की पर्ची पर उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। इस कदम का उद्देश्य बुखार या सामान्य बीमारियों में दवा के अत्यधिक या गलत प्रयोग से बच्चों को होने वाले नुकसान को रोकना है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि खांसी, सर्दी-जुकाम या बुखार जैसी सामान्य दिखने वाली बीमारियों में भी स्व-चिकित्सा (Self Medication) बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के इलाज में पूरी सतर्कता बरतें और केवल पंजीकृत एवं योग्य चिकित्सकों की सलाह पर ही दवा दें।

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