November 22, 2024

मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है पांडव सेरा जहां आज भी लहलहाती हैं पांडवों द्वारा रोपित धान की फसल ..

मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है पांडव सेरा जहां आज भी लहलहाती हैं पांडवों द्वारा रोपित धान की फसल..

 

 

उत्तराखंड: मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित पाण्डव सेरा और नन्दीकुण्ड पैदल मार्ग के भूभाग को प्रकृति ने अपने मनमोहक दृश्यों से सजाया और संवारा है। यहां से प्रकृति का नजदीक से नजारा देखने को मिलता है। जब प्रकृति प्रेमी प्रकृति की सुरम्य गोद में पहुंचता है, तो वह अपने जीवन की पीड़ाओं को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाता है। बता दे कि द्वापर युग में पांडवों द्वारा रोपित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और धान की फसल उगने के बाद मिट्टी के पवित्र क्षेत्र में समा जाती है। इसके विपरीत, पांडव सेरा में पांडवों के हथियारों की आज भी पूजा की जाती है।

पांडव सेरा में पांडवों की सिंचाई गूल आज भी हिमालय में उनके आगमन के भौतिक प्रमाण के रूप में काम करती है, और सिंचाई गूल से ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब सिंचाई नियमों के अनुरूप बनाया गया था। नंदीकुंड के परिदृश्य को प्रकृति ने नवेली दुल्हन की तरह सजाया है। नंदीकुंड में जब चौखंबा प्रतिबिंबित होता है, तो यह स्वर्ग जैसा लगता है, और जब इस भूभाग से असंख्य पर्वत श्रृंखलाएं एक साथ देखी जाती हैं, तो मन में अपार शान्ति की अनुभूति होती है। पांडव सेरा से लेकर नंदीकुंड क्षेत्र तक बड़ी संख्या में खिलने वाले बह्रमकमल के कारण इस क्षेत्र की तुलना वर्षा ऋतु में शिवलोक से की जाती है।

लोक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में जब पांचों पाण्डवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पांचों पाण्डव ने द्रोपती सहित मदमहेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम भूवैकुष्ठ बद्रीनाथ के लिए गमन किया। मदमहेश्वर धाम में पांचों पाण्डवों द्वारा अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद है। मदमहेश्वर धाम से बद्रीका आश्रम गमन करने पर पांचों पाण्डवों ने कुछ समय पाण्डव सेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पाण्डव सेरा के नाम से विख्यात हुआ। पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र – शस्त्र पूजे जाते है, तथा पाण्डवों द्वारा सिचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है तथा पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है।

पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्त: करण शुद्ध हो जाता है। यह भू-भाग बरसात के समय ब्रह्मकमल सहित अनेक प्रजाति के फूलों से आच्छादित रहता है।बता दे कि मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर पाण्डव सेरा तथा 25 किमी की दूरी पर नन्दीकुण्ड विराजमान हैं। मदमहेश्वर धाम से धौला क्षेत्रपाल, नन्द बराडी खर्क, काच्छिनी खाल, पनोर खर्क, द्वारीगाड, पण्डो खोली तथा सेरागाड पड़ावों से होते हुए पाण्डव सेरा पहुंचा जा सकता है।