September 20, 2024

HNN MEDIA

हर खबर की सच्चाई

चैत्र के महीने में पहाड़ों पर अपनी बहनों से मिलने आते हैं देवता..

चैत्र के महीने में पहाड़ों पर अपनी बहनों से मिलने आते हैं देवता..

जानिए उत्तराखंड में चैतोल और भिटौली का महत्व..

 

 

 

उत्तराखंड: देवभूमि उत्तराखंड को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। उत्तराखंड के तमाम लोकपर्व , भौगोलिक स्थिति और देवताओं के प्रति आस्था यहां की एक पहचान है। यहां की भौगोलिक स्थिति और यहां की सभ्यता संस्कृति इसे अन्य राज्यों से अलग बनाती हैं। उत्तराखंड में पहाड़ों में देवताओं का राज है, और समय-समय पर देवता अपने भक्तों के बीच अवतरित होते हैं। कोई भी शुभ काम करने से पहले देवताओं की आराधना होती है तो तमाम दुख-परेशानी में भी लोग देवताओं को याद करते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में देवताओं के लिए एक मजबूत आस्था है, जो यहां के लोगो को एक शक्ति भी देती है, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी विपरीत परिस्थितियों में लोग यहां जीवन यापन करते आए हैं।

देवताओं को माना जाता है पहाड़ों में रक्षक..

आपको बता दे कि कुछ दशक पहले तक पहाडों में न कोई अस्पताल होता था न अन्य कोई सुविधाएं, बस होती थी तो देवताओं के प्रति आस्था और विश्वास. जिससे यहां रह रहे लोगों का इलाज होता था। आज भी यह परंपरा चलते आ रही है, जो कि पहाडों में रहने की एक जीवनशैली है। जिसे यहां मनाए जाने वाले लोकपर्वों में देखा जा सकता है।

चैतोल पर्व की धार्मिक मान्यता..

बता दे कि सोर घाटी पिथौरागढ़ में मनाए जाने वाला लोकपर्व है चैतोल, इस दिन देवताओं की शक्ति और जनता का उनके प्रति श्रद्धा देखने को मिलती है। यह परंपरा हजारों साल से चले आ रही है। चैतोल पर्व में शिव के रूप में देवताओं को पूजा जाता है, चैत्र का वह समय होता है जब देवता अपनी बहनों से मिलने जाते हैं और उन्हें उपहार भेंट करते हैं। यह परंपरा कुमाऊं में भिटौली नाम से जानी जाती है। जिसमें देवता गण अपनी प्रजा के संग दूसरे गांवों में अपनी बहनों जो भगवती के रूप में विराजमान रहती हैं, उनको भिटौली देने जाते हैं।

जनता द्वारा देव-डांगरो को देव डोलो में बैठाया जाता है और इस भव्य यात्रा की शुरुआत होती है। पहाड़ो में देवताओं के प्रति श्रद्धा ही यहां की सभ्यता को अलग बनाता है। देवी-देवताओं के धरती पर इस अद्भुत मिलन के लोग साक्षी बनते हैं। विपरीत परिस्थितियों और सुविधाओं के अभाव में यह कहना गलत नहीं होगा कि देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा यहां के लोगों को सदियों से निरोग भी रखते हुए आई है। भले ही आज आधुनिकता सभी ये परंपराओं पर हावी होते जा रही है लेकिन पहाड़ों में अभी भी लोग अपनी सभ्यता को जीवित रखे हुए हैं।