July 21, 2025

पहली कक्षा में दाखिले की उम्र सीमा में बदलाव, अब 1 जुलाई तक पूरे होने चाहिए 6 साल..

पहली कक्षा में दाखिले की उम्र सीमा में बदलाव, अब 1 जुलाई तक पूरे होने चाहिए 6 साल..

 

 

उत्तराखंड: उत्तराखंड सरकार ने राज्य के हजारों अभिभावकों और स्कूल प्रशासन को बड़ी राहत देते हुए पहली कक्षा में दाखिले की उम्र सीमा में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। अब बच्चे को पहली कक्षा में प्रवेश के लिए 1 जुलाई तक 6 वर्ष की उम्र पूरी करनी होगी। इससे पहले निर्धारित उम्र सीमा को लेकर अभिभावकों में भ्रम की स्थिति थी, क्योंकि कुछ स्कूल 31 मार्च तो कुछ 1 अप्रैल की कट-ऑफ तिथि मानकर दाखिला दे रहे थे। इस संशोधन के बाद अब सभी स्कूलों में (यूनिफॉर्म) मानदंड लागू होंगे। राज्य सरकार ने इस बदलाव के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2011 की नियमावली में संशोधन किया है। शिक्षा विभाग के अनुसार, यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिसमें बच्चों की शैक्षिक परिपक्वता को आधार बनाने पर जोर दिया गया है। इस फैसले से उन अभिभावकों को विशेष राहत मिलेगी, जिनके बच्चों की उम्र 1 अप्रैल से 30 जून के बीच पूरी होती है और पहले वे दाखिले से वंचित रह जाते थे। अब वे भी निर्धारित आयु सीमा में शामिल होकर सत्र की शुरुआत में ही प्रवेश ले सकेंगे।

इस नियम से हजारों अभिभावक हर साल प्रभावित होते थे। कई मामलों में बच्चों को सिर्फ 15-30 दिन के अंतर के कारण पूरे साल स्कूल से बाहर रहना पड़ता था। परेशान अभिभावक शिक्षा की समयसीमा को लचीला बनाने की मांग कर रहे थे, और सवाल उठा रहे थे कि क्या इतने छोटे अंतर के लिए पूरे शैक्षिक वर्ष से वंचित रखना न्यायसंगत है? अब सरकार ने अभिभावकों की आवाज़ पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। शिक्षा विभाग ने शिक्षा का अधिकार नियमावली 2011 में संशोधन कर यह बदलाव लागू किया है। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप है, जिसमें बच्चों की सामाजिक-भावनात्मक परिपक्वता को प्राथमिकता दी गई है। नए नियमों के तहत अब सभी सरकारी और निजी स्कूलों को दाखिले के समय 1 जुलाई तक की आयु सीमा को मान्य मानना होगा। इससे दाखिला प्रक्रिया में एकरूपता आएगी और अभिभावकों के मन में फैली असमंजस की स्थिति खत्म होगी।

यह मसला राज्य बाल आयोग के समक्ष उस समय उठा था, जब कई अभिभावकों ने शिकायत की कि उनके बच्चों को सिर्फ कुछ दिन या सप्ताह की देरी के कारण स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। आयोग ने इस पर संवेदनशील रुख अपनाते हुए शिक्षा विभाग को नियमों की समीक्षा के निर्देश दिए थे। राज्य बाल आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा महानिदेशक को पत्र भेजकर नियमों पर पुनर्विचार करने को कहा था। आयोग का तर्क था कि कुछ दिनों की देरी के कारण बच्चे को पूरे वर्ष की शिक्षा से वंचित करना अनुचित है, और इससे बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर असर पड़ सकता है।

आयोग के सुझाव और व्यापक विचार-विमर्श के बाद राज्य सरकार ने पहली कक्षा में प्रवेश की आयु सीमा में पूरा तीन महीने का विस्तार करते हुए कट-ऑफ तिथि 1 अप्रैल से बढ़ाकर 1 जुलाई कर दी है। यह बदलाव शिक्षा के अधिकार (RTE) नियमावली 2011 में संशोधन के जरिए लागू किया गया है। इस निर्णय से हर साल हजारों अभिभावकों को राहत मिलेगी, जिनके बच्चों की उम्र अप्रैल, मई या जून में पूरी होती है। अब वे भी नियमित सत्र की शुरुआत में ही स्कूल में दाखिला ले सकेंगे। उत्तराखंड निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियमावली 2025 के तहत पहली कक्षा में दाखिले के लिए एक जुलाई तक छह साल की आयु पूरी होने की अधिसूचना शुक्रवार को जारी कर दी गई। एक शिक्षा अधिकारी ने कहा कि यह फैसला अभिभावकों के साथ-साथ स्कूलों के लिए भी हितकारी है। मौजूदा सत्र में एक अप्रैल की आयु सीमा के कारण कई स्कूलों में शैक्षिक सत्र 2025-26 में दाखिले कम हुए थे, जो अब बढ़ सकेंगे।

दाखिला ले चुके बच्चों पर कोई असर नहीं

सरकार ने स्पष्ट किया है कि जो बच्चे इस समय किसी भी प्री-प्राइमरी कक्षा में नामांकित हैं, उन्हें आगामी वर्ष में कक्षा-एक में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा, भले ही उनकी उम्र नई कट-ऑफ (1 जुलाई तक 6 वर्ष) से कुछ कम हो। इससे इन बच्चों की शैक्षिक निरंतरता बनी रहेगी और मानसिक-शैक्षिक व्यवधान से बचाव होगा। शिक्षा विभाग के अनुसार यह छूट केवल वर्तमान सत्र में नामांकित बच्चों के लिए लागू होगी। आगामी शैक्षणिक वर्षों से सभी स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी प्री-स्कूल (नर्सरी/एलकेजी) प्रवेश नीति इस प्रकार बने, कि बच्चा कक्षा-1 में प्रवेश के समय तक 6 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के अनुरूप है, जिसमें 3-8 वर्ष की उम्र को ‘फाउंडेशनल स्टेज’ माना गया है। सरकार का मानना है कि यह बदलाव बच्चों की बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक परिपक्वता को ध्यान में रखते हुए किया गया है।