August 23, 2025

विधानसभा मानसून सत्र- बारिश और खतरे के बीच गैरसैंण पहुंची सरकार..

विधानसभा मानसून सत्र- बारिश और खतरे के बीच गैरसैंण पहुंची सरकार..

 

 

उत्तराखंड: करीब एक साल के लंबे इंतजार के बाद उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण एक बार फिर राजनीतिक हलचल से सराबोर हो उठी है। मंगलवार 19 अगस्त यानी आज से शुरू होने जा रहे विधानसभा के मानसून सत्र के लिए सरकार और विपक्ष दोनों भराड़ीसैंण पहुंच चुके हैं। एक साल बाद गूंजते कदमों और चर्चाओं ने सन्नाटे को तोड़ दिया है। पिछले साल 21 अगस्त 2024 को भराड़ीसैंण में मानसून सत्र आयोजित हुआ था, जिसके बाद राजधानी देहरादून में बजट सत्र संपन्न हुआ, और तब से गैरसैंण जैसे राजनीतिक विराम पर चला गया था। गैरसैंण और भराड़ीसैंण में लोगों को इस सत्र से सिर्फ चर्चा नहीं, बल्कि कुछ ठोस फैसलों और नीति संकेतों की भी उम्मीद है। लंबे समय से यह मांग होती रही है कि गैरसैंण को केवल ‘ग्रीष्मकालीन राजधानी’ घोषित करने तक सीमित न रखा जाए, बल्कि वहां निरंतर शासन-प्रशासन की मौजूदगी भी बनी रहे।

सोमवार से गैरसैंण की शांत वादियों में फिर से लोकतंत्र की गूंज सुनाई देने लगी है। एक साल बाद जब सीएम पुष्कर सिंह धामी अपने मंत्रिमंडल और विधायकों के साथ ग्रीष्मकालीन राजधानी पहुंचे, तो राजनीति की चहल-पहल ने भराड़ीसैंण का सन्नाटा तोड़ दिया। वहीं दूसरी ओर विपक्ष भी कमर कस कर सवालों की झड़ी लगाने को तैयार बैठा है। लेकिन इस बार का सफर सिर्फ सत्र की औपचारिकता तक सीमित नहीं है देहरादून से गैरसैंण तक का रास्ता खुद बयां करता है कि इस एक साल में क्या-क्या बदला है। जगह-जगह टूटी सड़कें, आपदा से उजड़े गांव और संघर्ष करती जनता ये सब कुछ नेताओं के सामने मौन लेकिन मुखर सवाल की तरह खड़े हैं। सत्ता पक्ष हो या विपक्षदोनों को इस बार अहसास है कि जनता अब सिर्फ भाषण नहीं, समाधान चाहती है।

पहाड़ के लोगों को भरोसा है कि जो नेता टूटी सड़कों से होकर गैरसैंण तक पहुंचे हैं, उन्होंने रास्ते में दर्द महसूस किया होगा। अब ये उम्मीद है कि वही दर्द इस बार सदन में आवाज बनेगा और नीति में तब्दील भी होगा। गैरसैंण केवल सत्र का ठिकाना नहीं, बल्कि वह प्रतीक है जो पहाड़ की उपेक्षा और आत्मसम्मान दोनों की याद दिलाता है। जनता को अब इंतजार है कि क्या यह मानसून सत्र उन नीतियों की नींव रखेगा, जो वास्तव में पहाड़ के जीवन में बदलाव लाएंगी? सड़कों के घाव, विकास की अधूरी योजनाएं, पलायन की टीस, और आपदा के जख्म ये सारे मुद्दे इस बार सदन के भीतर कितनी गूंज पाते हैं, यही तय करेगा कि गैरसैंण की इस हलचल का भविष्य कितना स्थायी होगा।

पहाड़ चढ़ने का जुनून हो तो मुश्किलें कुछ नहीं

जहां एक ओर मानसून की बारिश हर दिन पहाड़ की सहनशीलता की परीक्षा ले रही है, वहीं सरकार और प्रशासन ने भी जोखिम भरे हालात में गैरसैंण तक का कठिन सफर तय कर दिखाया है। विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने से पहले दिनभर सरकारी काफिले भूस्खलन, मलबा और टूटी सड़कों से जूझते हुए ग्रीष्मकालीन राजधानी तक पहुंचे। गाड़ियों के पहिए मलबे में धंसे, रास्ते बार-बार बंद हुए, लेकिन फिर भी सरकार के कदम नहीं रुके। सीएम पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में जब पूरी सरकारी मशीनरी गैरसैंण में डटी नजर आई, तो यह साफ हो गया कि इस बार का सत्र सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक संकल्प भी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये पहली बार है जब सरकार ने प्राकृतिक आपदा के बीच भी पहाड़ का रुख किया है, जबकि कई बार सामान्य मौसम में भी गैरसैंण को नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस बार सरकार ने न सिर्फ गैरसैंण पहुंचकर संवेदनशीलता दिखाई है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि विकास की राह भले मुश्किल हो, लेकिन इरादे मजबूत हों तो कोई चुनौती बड़ी नहीं होती।