सिनेमा घरों में आ चूका हैं अजाण गढ़वाली फिल्म उत्तराखंड सिनेमा में एक नया अध्याय..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में सिनेमा का इतिहास आज से लगभग चार दशक पूर्व क्लासीकल फिल्म “जग्वाल” के साथ शुरू हुआ। उसके बाद विश्वेश्वर नोटियाल निर्देशित और बलराज नेगी अभिनीत “घरजवैं” फिल्म ने गढ़वाल सिनेमा को वो ऊंचाई दी जिसके लिए कई समकालीन भाषायी सिनेमा तरस रहे थे।आज भी हिंदी बेल्ट मे क्षेत्रीय सिनेमा उतने उत्कृष्ट स्तर का नहीं है।”घरजवैं” फिल्म के बाद गढ़वाली सिनेमा फिर अपनी शुरुआती सफ़लता को बरकरार नहीं रख पायीफ़िल्में बनी लेकिन दर्शकों में रुचि नहीं जगा पायो। लेकिन अब फिर से घरजवैं के नायक बलराज नेगी और निर्माता के राम नेगी के और निर्देशक अनुज जोशी ने एक ऐसी फिल्म बनाई है जो गढ़वाली सिनेमा के दर्शकों में गढ़वाली सिनेमा के प्रति फिर से कुतूहल उत्पन्न करने को सिनेमा घरों में आ चुकी है। एक करोड़ रुपये से भी कम की लागत में इससे अच्छी फिल्म बन ही नहीं सकती थी।
फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई और सटीक है कि कभी कभी विश्वास ही नहीं होता कि आप गढ़वाली फिल्म देख रहे हैं। एक बार सिनेमा हॉल में बैठने के बाद फिल्म आपको अंत तक पूरी तरह बांधे रखती है। यद्यपि यह फिल्म गढ़वाली सिनेमा में एक थ्रिल और सस्पेंस फिल्म का नया प्रयोग है।लेकिन अपने गंभीर कथानक के साथ सारी फिल्म मे संतुलित और स्तरीय हास्य फिल्म के अंत तक चलता रहता है। फिल्म अपने थ्रिलर और सस्पेंस मूवी होने के दावे को पूरी तरह चरितार्थ करती है। फिल्म के अंत मे सारे दर्शक इसी असमंजस के साथ भौचक्के से उठते हैं कि क्या उन्होंने वाकई इतनी उम्दा थ्रिलर फिल्म अपनी गढ़वाली भाषा मे देखी। उत्तराखंड के चमोली जनपद के नारायणबगड़ के ग्राम भगौती (भगवती , जो कि विश्व प्रसिद्ध नंदा राजजात का एक पड़ाव भी है) की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म शुरू से ही बहुत तेजी से चलती है प्रत्येक दृश्य में मे फिल्म की टीम ने अपना बेह्तरीन दिया है।
सभी कलाकारों ने अपनी भूमिका तत्परता से निभाया है। उत्तराखंड में फैलते ड्रग्स के कोण को दिखाती इस थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री फिल्म मे दर्शकों के लिए बहुत सुन्दर सकारात्मक संदेश, इसे अवश्य देखने योग्य बनाते हैं। आज के व्यावसायिक फूहड़ता के दौर मे ऐसी साफ़ सुथरी फिल्म इसे सही अर्थों में उत्तराखंड की प्रतिनिधि फिल्म बनाते है। फिल्म का पहला गाना पहाड़ की मनी ऑर्डर व्यवस्था की याद दिलाता सुदर दर्शाया गया है इसके स्थानीय लव्वा और पाखुल पहनी महिलाये इस मंचन को क्लासीकल सा बना देती हैं। फिल्म सिनेमा के पारखी लोगों के लिए भी है। फिल्म में प्रमोटेड टू स्टार का पहाड़ में कोतवाली का चार्ज सम्हालना पहाड़ में प्रशासन में पोस्टिंग की स्थिति और साथ ही पहाड़ में शांति प्रियता का संकेत भी देता है। लेकिन उसके अंदर एक सोफ्ट भ्रष्टाचार का चित्रण शानदार तरीके से उभर कर आया है। फिल्म का नायक जब भी निर्णय लेने में असमंजस में आता है तो उसकी पत्नी की राय उसके लिए महत्तवपूर्ण हो जाती है यह पहाड़ी परिवारों की सामान्य प्रवृत्ति फिल्म को बारीकी से देखने पर ही समझ आ सकता है।
बलराज नेगी तो गढ़वाली सिनेमा के मील की पत्थर है इस फिल्म उनकी भूमिका और उनकी संवाद अदायगी मे ठेठ गढ़वाली टोन सम्मोहित सा करती रहती है। फिल्म के संवाद और दृश्य गागर में सागर से भरे हुए हैं। पहाड़ मे अवांछित तत्त्वों के आगमन और बढ़ते अपराधों को फिल्म ने बहुत तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया है। फिल्म देखते समय सारी फिल्म एक सत्य घटना का प्रस्तुतीकरण सा प्रतीत होती है। पहाड़ को अपने परिवेश के हिसाब से स्वस्थ मनोरंजन की आवश्यकता और उत्तर दायित्व को इस फिल्म के सिनेकारों ने जिस ढंग से समझा है, वह उत्तराखंड के आज के नीरस सोशियो पोलिटीकल माहौल में मनोरंजन के माध्यम से सकारात्मक संदेश देने की चेष्टा करता हवा का सुन्दर सा झोंका है। यह फिल्म आशा जगाती है कि उत्तराखंड में फ़िल्मों को लोगों को चेताने के लिए मनोरंजन को माध्यम बनाकर , नयी जोरदार पहल शुरू हो चुकी है। उत्तराखंड के समाज और विशेष कर युवाओं को संदेश देती यह फिल्म सफ़लता की ऊंचाई को छुए इसके लिए सभी पहाड़ के लोगों को इस फिल्म को अवश्य देखना चाहिए।
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