
पंचायत चुनाव विवाद में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर ठोका जुर्माना..
उत्तराखंड: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग (SEC) पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। शीर्ष अदालत ने आयोग की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि पंचायत चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों का नामांकन रद्द किया जाए, जिनका नाम दो या अधिक स्थानों पर वोटर लिस्ट में दर्ज है। यह प्रावधान साफ तौर पर नियमों और चुनाव की पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए अनिवार्य किया गया था। लेकिन, चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया और ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी। इस लापरवाही और आदेश की अवहेलना को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की चुनौती को न केवल खारिज किया, बल्कि उस पर जुर्माना भी ठोका। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की ज़िम्मेदारी लोकतांत्रिक मूल्यों और नियमों का पालन सुनिश्चित करना है। जब आयोग खुद ही नियमों का उल्लंघन करता है या अदालत के आदेशों की अनदेखी करता है, तो यह न केवल चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि जनता के विश्वास को भी आघात पहुंचाता है।
SC ने उत्तराखंड चुनाव आयोग पर लगाया 2 लाख का जुर्माना..
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग (SEC) पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई। यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने पारित किया। अदालत ने साफ कहा कि संवैधानिक संस्थाएं वैधानिक प्रावधानों की अनदेखी नहीं कर सकतीं। सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने आयोग के वकील से सीधे सवाल किया आप वैधानिक प्रावधान के खिलाफ कैसे कोई निर्णय ले सकते हैं? उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पंचायत चुनाव में ऐसे कई उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई, जिनका नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में दर्ज था। हाई कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए आयोग को निर्देश दिया था कि ऐसे उम्मीदवारों का नामांकन रद्द किया जाए। लेकिन राज्य चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के इन आदेशों को लागू नहीं किया। नतीजतन, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत ने आयोग की चुनौती को न केवल खारिज किया बल्कि उसकी लापरवाही को गंभीर मानते हुए उस पर जुर्माना भी ठोका। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को लोकतंत्र की पवित्रता बनाए रखने के लिए सख्ती से नियमों का पालन करना होगा। अगर ऐसी संस्थाएं ही नियम तोड़ने लगेंगी तो चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा।
पंचायत चुनावों के दौरान यह शिकायत सामने आई थी कि कई ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई, जिनके नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में दर्ज थे। इस पर सवाल उठाते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि यह उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 9(6) और 9(7) का उल्लंघन है। अदालत ने आयोग के उस परिपत्र पर रोक लगाई, जिसमें कहा गया था कि किसी उम्मीदवार का नाम एक से ज्यादा ग्राम पंचायत, क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र या नगर निकाय की मतदाता सूची में होने के बावजूद उसका नामांकन निरस्त नहीं किया जाएगा। हाई कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि उस परिपत्र पर आगे कोई कार्यवाही न हो। SEC ने हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन शीर्ष अदालत ने आयोग की दलीलों को खारिज कर दिया। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण नज़ीर है। अदालत ने साफ संदेश दिया है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को नियमों और अधिनियमों का सख्ती से पालन करना होगा। किसी भी तरह की लापरवाही या आदेश की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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