
सचिवालय में वर्षों से जमे अफसरों पर नहीं चला तबादला नीति का डंडा, पारदर्शिता पर उठे सवाल..
उत्तराखंड: सचिवालय में लंबे समय से जमे अधिकारी-कर्मचारियों को हटाने और व्यवस्थाओं को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से लागू की गई नई तबादला नीति खुद सवालों के घेरे में आ गई है। नीति के तहत 31 जुलाई तक सचिवालय सेवा के अधिकारियों-कर्मचारियों का वार्षिक स्थानांतरण किया जाना था, लेकिन अंतिम तिथि बीतने के बाद भी कोई भी तबादला सूची जारी नहीं की गई। यह नीति हाल ही में इस उद्देश्य से लाई गई थी कि एक ही स्थान पर वर्षों से जमे कर्मचारियों का स्थानांतरण पारदर्शी तरीके से हो। लेकिन जब तय समयसीमा तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो इस नीति की नियत और क्रियान्वयन पर ही सवाल उठने लगे हैं। सूत्रों के अनुसार सचिवालय प्रशासन की ओर से तबादला नीति को लेकर किसी भी स्तर पर कोई तैयारी या कार्रवाई नहीं की गई, जिससे यह स्पष्ट है कि नीति को महज औपचारिकता के तौर पर लागू किया गया। कर्मचारियों और प्रशासनिक हलकों में इस पर चर्चा तेज है कि जब पारदर्शिता की बात कहकर नीति लाई गई, तो उसे व्यवहार में लाने से परहेज क्यों किया गया। अब निगाहें सचिवालय प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस मामले में क्या स्पष्टीकरण देता है और कब तक तबादला सूची जारी की जाती है।
नीति के तहत यह स्पष्ट किया गया था कि तैनाती अवधि की गणना के लिए हर साल एक अप्रैल को कटऑफ तिथि माना जाएगा। साथ ही किसी भी विभाग या अनुभाग में श्रेणी क, ख या ग के अधिकारी-कर्मचारी पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद ही दोबारा तैनात हो सकेंगे। तबादला करते समय पूर्व तैनातियों का संज्ञान लेना भी आवश्यक था। नीति में यह भी उल्लेख था कि तबादला आदेश जारी होने के तीन दिन के भीतर बिना प्रतिस्थानी की प्रतीक्षा किए अधिकारी-कर्मचारी को नए कार्यस्थल पर कार्यभार ग्रहण करना होगा। इन स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद सचिवालय प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे नीति की नीयत और गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। नीति के लागू होने से उम्मीद थी कि वर्षों से एक ही स्थान पर जमे अधिकारियों-कर्मचारियों को हटाया जाएगा, लेकिन तबादला सूची न आने से पारदर्शिता की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सचिवालय प्रशासन इस पर कब और क्या कदम उठाएगा।
2007 की तबादला नीति भी नहीं हो पाई थी लागू..
उत्तराखंड सचिवालय में वर्षों से जमे अधिकारियों और कर्मचारियों को बदलने और विभागीय कार्यसंस्कृति में पारदर्शिता लाने के लिए हाल ही में लागू की गई नई तबादला नीति भी बेअसर साबित होती दिख रही है। 2007 में लागू की गई पहली तबादला नीति भी प्रभावी नहीं हो सकी थी, और अब नई नीति के तहत भी 31 जुलाई तक कोई तबादला सूची जारी नहीं की गई। कई अनुभागों में अधिकारी वर्षों से जमे हैं। कुछ अधिकारियों को जरूरत से कम कार्यभार सौंपा गया है, जबकि कुछ सचिवों के करीबी माने जाने वाले अफसरों को वर्षों से एक ही स्थान पर बनाए रखा गया है। इन्हीं अनियमितताओं और मनमानी को खत्म करने के लिए नवीन तबादला नीति लाई गई थी, लेकिन अब उस पर अमल नहीं होने से पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगे हैं। नई नीति में स्पष्ट था कि एक अनुभाग में पांच साल की तैनाती के बाद ही दोबारा पोस्टिंग हो सकेगी, और तबादला आदेश के बाद तीन दिन के भीतर कार्यभार ग्रहण करना होगा, लेकिन सचिवालय प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब यह स्थिति सिर्फ नीतिगत शिथिलता ही नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति की कमी को भी उजागर कर रही है। प्रशासनिक पारदर्शिता की उम्मीद में बनाई गई यह नीति यदि ऐसे ही कागज़ों में दबी रही, तो सचिवालय की कार्यप्रणाली पर जनता और कर्मचारियों दोनों का विश्वास कमजोर होना तय है।
सचिवालय संघ के पूर्व अध्यक्ष ने उठाए सवाल..
सचिवालय संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी ने नीति में कई गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हुए सचिवालय प्रशासन और मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं। जोशी का कहना है कि नीति तैयार करते समय कर्मचारी प्रतिनिधियों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया, जिससे कर्मचारियों की समस्याएं और वास्तविकताएं नीति में परिलक्षित नहीं हो पाईं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि नीति में कर्मचारियों की अधिकतम तैनाती अवधि का तो उल्लेख है, लेकिन न्यूनतम सेवा अवधि को लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाया गया। उनका कहना है कि यदि सचिवालय प्रशासन पारदर्शिता की बात करता है, तो सबसे पहले उसे स्वयं इस नीति का अनुपालन करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अभी तक तबादलों की कोई सूची जारी नहीं की गई है, जबकि नीति के तहत 31 जुलाई अंतिम तिथि तय की गई थी। प्रशासन का कहना है कि तबादले आवश्यकता के आधार पर आगे किए जा सकते हैं, और तबादलों के समय एक ही स्थान पर तैनाती की अवधि सहित सभी नियमों का ध्यान रखा जाएगा। हालांकि कर्मचारियों के बीच यह धारणा बन रही है कि नीति का उद्देश्य केवल दिखावटी था, और जब तक इस पर ईमानदारी से अमल नहीं किया जाएगा, तब तक सचिवालय की कार्यप्रणाली में बदलाव की उम्मीद बेमानी है।
More Stories
कैंची धाम से पर्यटकों की धारण क्षमता सर्वे की शुरुआत, मनसा देवी व चंडी देवी में भी होगा आकलन..
तीन दिन बाद बहाल हुआ रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे, केदारनाथ यात्रियों ने ली राहत की सांस..
नवोदय विद्यालयों के भोजन में सुधार की तैयारी, निदेशालय तय करेगा मैन्यू..