August 10, 2025

राज्य पाठ्यचर्या में शामिल हुईं श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण, अगले सत्र से लागू होंगी नई पुस्तकें..

राज्य पाठ्यचर्या में शामिल हुईं श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण, अगले सत्र से लागू होंगी नई पुस्तकें..

 

 

उत्तराखंड: प्रदेश के सभी सरकारी और अशासकीय विद्यालयों में अब छात्र-छात्राएं प्रतिदिन प्रार्थना सभा के दौरान श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोक पढ़ेंगे। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को नैतिक मूल्यों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और भारतीय संस्कृति की गहराई से परिचित कराना है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने इस संबंध में सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा कि प्रार्थना सभा में प्रतिदिन कम से कम एक श्लोक अर्थ सहित सुनाया जाए। साथ ही श्लोक का वैज्ञानिक और तर्कसंगत विश्लेषण भी छात्रों को समझाया जाए, ताकि वे केवल रटने तक सीमित न रहें, बल्कि गहराई से अर्थ ग्रहण करें।

सप्ताह में एक दिन एक मूल्य आधारित श्लोक को “सप्ताह का श्लोक” घोषित किया जाएगा। इसे विद्यालय के सूचना पट्ट (नोटिस बोर्ड) पर हिंदी अथवा स्थानीय भाषा में अर्थ सहित प्रदर्शित किया जाएगा। छात्र-छात्राएं इस श्लोक का अभ्यास करेंगे और सप्ताह के अंत में उस पर चर्चा व संवाद किया जाएगा। इस प्रक्रिया से छात्रों की वाक-चातुर्य, चिंतन क्षमता और नैतिक समझ को बढ़ावा मिलेगा। डॉ. सती का कहना हैं कि यह पहल छात्रों में मानव मूल्यों, आत्मनियंत्रण, और कर्तव्यपरायणता की भावना को बढ़ावा देने हेतु की जा रही है। उन्होंने सभी विद्यालयों से अपेक्षा की है कि वे इस कार्यक्रम को गंभीरता और नियमितता से लागू करें।

शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे समय-समय पर श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों की व्याख्या करें और छात्रों को यह जानकारी दें कि गीता के सिद्धांत मूल्यबोध, व्यवहार, नेतृत्व कौशल, निर्णय क्षमता, भावनात्मक संतुलन, एवं वैज्ञानिक सोच के विकास में सहायक हैं। यह ग्रंथ सांख्य, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और नैतिक दर्शन जैसे विषयों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। श्रीमद्भगवद् गीता की शिक्षाएं धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी हैं और केवल किसी एक धर्म तक सीमित नहीं हैं। प्रत्येक सप्ताह एक श्लोक को “सप्ताह का श्लोक” घोषित किया जाएगा, जो किसी नैतिक या व्यवहारिक मूल्य पर आधारित होगा। यह श्लोक विद्यालय के सूचना पट्ट पर अर्थ सहित लिखा जाएगा और छात्र उसका अभ्यास करेंगे। सप्ताह के अंत में उस श्लोक पर चर्चा, प्रश्नोत्तर, और फीडबैक सत्र आयोजित किया जाएगा।

विद्यालय स्तर पर यह भी सुनिश्चित किया जाए कि छात्र-छात्राओं को श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोक केवल विषय या पठन सामग्री के रूप में न पढ़ाए जाएं, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि यह प्रयास उनके जीवन एवं व्यवहार में भी परिलक्षित हो। हर स्तर पर सुनिश्चित किया जाए कि छात्र-छात्राओं के चारित्रिक विकास, आत्म-नियंत्रण, जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण के विकास, व्यक्तित्व निर्माण, विज्ञान सम्मत सोच विकसित करने एवं उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनाने के लिए श्रीमद् भगवद् गीता की शिक्षा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उपयोग किया जाए।डॉ. सती ने कहा कि यह पहल संपूर्ण शिक्षा के उद्देश्यों को पूर्ण करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहाँ छात्र सिर्फ ज्ञान नहीं, बल्कि संस्कार, विवेक, और कर्तव्यबोध के साथ विकसित होंगे।

उत्तराखंड में विद्यालयी शिक्षा को भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण को अब राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा में विधिवत रूप से शामिल कर लिया गया है। इस निर्णय के तहत अब छात्रों को इन महान ग्रंथों के सिद्धांत, मूल्य, और व्यवहारिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत पढ़ाया जाएगा। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने जानकारी दी कि राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा के अनुरूप नई पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया जा रहा है, जिन्हें अगले शैक्षणिक सत्र से विद्यालयों में लागू किए जाने का प्रस्ताव है।

राज्य सरकार का मानना है कि भारतीय दर्शन, संस्कृति, और मूल्य-आधारित शिक्षा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना आज की आवश्यकता है। गीता और रामायण के शिक्षण से न केवल छात्रों का सांस्कृतिक बोध बढ़ेगा, बल्कि वे कर्तव्य, संयम, परोपकार और नेतृत्व जैसे जीवन मूल्यों से भी परिचित होंगे। यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा, नैतिक शिक्षा, और मूल्य आधारित शिक्षा को पाठ्यचर्या में शामिल करने की सिफारिश की गई है। राज्य सरकार ने इसी दिशा में ठोस कदम उठाया है।

शिक्षा निदेशक ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत छात्र-छात्राओं को भारतीय ज्ञान परंपरा का आधार एवं ज्ञान प्रणाली का अध्ययन कराया जाना है, इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम व पाठ्य पुस्तकें विभिन्न कक्षाओं के लिए विकसित करने की कार्रवाई की जा रही है। इस बैठक में शिक्षा विभाग ने राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा (State Curriculum Framework – SCF) से सीएम को अवगत कराया। इसी दौरान सीएम ने स्पष्ट निर्देश दिए कि भारतीय ज्ञान परंपरा के तहत गीता और रामायण को कक्षागत पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। इस पहल का उद्देश्य केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन नहीं, बल्कि उनसे जुड़े नैतिक मूल्य, विवेकशीलता, भावनात्मक संतुलन, नेतृत्व क्षमता, और कर्तव्यबोध जैसे गुणों का विकास है।

गीता और रामायण की शिक्षाएं छात्रों को न केवल संस्कृति से जोड़ेंगी, बल्कि उन्हें समझदार, जिम्मेदार और संतुलित व्यक्तित्व की ओर भी अग्रसर करेंगी। शिक्षा निदेशक का कहना हैं कि श्रीमद् भगवद् गीता को जीवन के हर क्षेत्र में पथ प्रदर्शक माना गया है। इसका वैज्ञानिक आधार भी है। जो न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है बल्कि यह मानव जीवन के विज्ञान, मनोविज्ञान तथा व्यवहार शास्त्र का भी उत्कृष्ट ग्रंथ है, जिसमें मनुष्य के व्यवहार, निर्णय क्षमता, कर्तव्यनिष्ठा, तनाव प्रबंधन एवं विवेकपूर्ण जीवन जीने के वैज्ञानिक तर्क निहित हैं। विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को एक श्रेष्ठ नागरिक बनाए जाने के दृष्टिगत श्रीमद् भगवद् गीता मील का पत्थर साबित हो सकती है।