
पंचायत चुनाव न होने से उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायतें नेतृत्व विहीन..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति से संबंधित अध्यादेश को राजभवन ने मंजूरी नहीं दी है, जिससे प्रदेश की लगभग 10,760 त्रिस्तरीय पंचायतें प्रशासनिक रूप से खाली हो गई हैं। इस स्थिति ने पंचायतों में एक संवैधानिक संकट उत्पन्न कर दिया है, क्योंकि प्रशासकों की नियुक्ति के बिना पंचायतों का संचालन बाधित हो रहा है। राजभवन द्वारा अध्यादेश को मंजूरी न देने के पीछे तकनीकी कारण बताए जा रहे हैं, हालांकि राज्य सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस स्थिति के कारण पंचायतों में विकास कार्य, योजनाओं का क्रियान्वयन और अन्य प्रशासनिक कार्य ठप हो गए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष बढ़ रहा है।
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति को लेकर संवैधानिक संकट गहराता जा रहा है। पंचायती राज विभाग ने प्रशासकों की छह महीने की अवधि समाप्त होने के बाद पुनर्नियुक्ति के लिए अध्यादेश का प्रस्ताव तैयार किया, जिसे विधायी विभाग ने यह कहते हुए लौटा दिया कि एक बार वापस आया अध्यादेश उसी रूप में दोबारा लाना संविधान के साथ कपट होगा। इसके बावजूद संशोधन के साथ अध्यादेश राजभवन भेजा गया, जिसे तकनीकी अड़चनों के कारण मंजूरी नहीं मिली। इस संवैधानिक संकट के समाधान के लिए राज्य सरकार को शीघ्र ही पंचायत चुनावों की प्रक्रिया शुरू करनी होगी, ताकि लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखा जा सके और पंचायतों का सुचारु संचालन सुनिश्चित किया जा सके।
राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक या प्रस्ताव को विधायी विभाग द्वारा उठाई गई आपत्तियों के संदर्भ में वापस लौटाने से संबंधित है। राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन ने जानकारी दी है कि विधायी विभाग की आपत्तियों का समाधान किए बिना संबंधित दस्तावेज (संभवतः कोई विधेयक या प्रस्ताव) राजभवन भेजा गया था। राजभवन ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए इसे वापस विधायी विभाग को भेज दिया है। राजभवन का कहना है कि कुछ बिंदु स्पष्ट नहीं थे, और उन्हें स्पष्ट करने के लिए विधिक परीक्षण की आवश्यकता थी। विधायी विभाग ने कुछ मसले उठाए थे, जिनका समाधान नहीं किया गया था। कानूनी समीक्षा के बाद राजभवन ने इसे लौटा दिया। यह घटनाक्रम सरकार और राज्यपाल के बीच औपचारिक प्रक्रिया और दस्तावेजों की वैधता को लेकर समन्वय की आवश्यकता को दर्शाता है।
10760 त्रिस्तरीय पंचायतें हुईं मुखिया विहीन..
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था गंभीर संकट में है। प्रदेश की कुल 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें वर्तमान में नेतृत्व विहीन हो चुकी हैं। केवल हरिद्वार जिले की 318 ग्राम पंचायतें ही इस स्थिति से अछूती हैं, जहां समय रहते चुनाव संपन्न करा लिए गए थे। यह स्थिति उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार उत्पन्न हुई है। वर्ष 2021 में उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 में संशोधन के लिए अध्यादेश लाया गया था। इस अध्यादेश को राजभवन से मंजूरी मिल गई थी, लेकिन इसे विधानसभा से पारित नहीं किया गया। इस बीच केवल हरिद्वार में अध्यादेश के लागू होने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए गए। अन्य जिलों में चुनाव न होने के चलते पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो गया है और अब वहां कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है। इससे विकास कार्यों, योजनाओं के क्रियान्वयन और स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों पर गंभीर असर पड़ रहा है। राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन का कहना हैं कि विधायी विभाग की कुछ आपत्तियों का समाधान किए बिना ही संबंधित प्रस्ताव राजभवन भेजा गया था। दस्तावेजों की स्पष्टता न होने और विधिक परीक्षण के अभाव में इसे विधायी विभाग को वापस भेजा गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति राज्य सरकार और राजभवन के बीच समन्वय की कमी और विधायी प्रक्रिया की लापरवाही का परिणाम है। यदि जल्द ही समाधान नहीं निकाला गया तो इससे गांवों के स्तर पर शासन-प्रशासन पूरी तरह ठप हो सकता है।
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