April 29, 2024

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अन्नकूट मेले को लेकर केदारनाथ धाम में उत्साह, फूलों से सजाया गया बाबा केदार का धाम..

अन्नकूट मेले को लेकर केदारनाथ धाम में उत्साह, फूलों से सजाया गया बाबा केदार का धाम

तीर्थ पुरोहितों द्वारा अन्नकूट मेले का परंपरागत किया जा रहा हैं निर्वाह..

 

 

 

उत्तराखंड: रक्षाबंधन से एक दिन पहले बाबा केदार के धाम में भतुज मेला यानी की अन्नकूट उत्सव की धूम देखने को मिल रही है। अन्नकूट उत्सव को राखी से एक दिन पहले यानी की मंगलवार देर रात के बाद धूमधाम से मनाया जाएगा। अन्नकूट उत्सव के मौके पर बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) ने तैयारी पूरी कर ली है। बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि दानीदाता के सहयोग से 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। भगवान केदारनाथ को नए अनाज का भोग चढाने का उत्सव भतूज अन्नकूट मेला कर मंगलवार देर रात को आयोजित होगा। सांयकाल को पूजा आरती के बाद ज्योर्तिलिंग को पके चावलों से ढ़क दिया जाएगा। रात्रि को दो बजे से चार बजे सुबह तक श्रद्धालु दर्शन करेंगे। चावलों के भोग को मंदाकिनी नदी में प्रवाहित किया जाएगा। मान्यता है कि भगवान शिव नए अनाजों से जहर को जनकल्याण के लिए खुद में समाहित कर देते है।

हर साल आयोजित होने वाले इस धार्मिक मेले को लेकर लोगों में उत्साह है। वहीं केदार घाटी में विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी , ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ सहित कई अन्य शिव मंदिरों में पर भी इसी परंपरा को निभाया जाता है। प्रतिवर्ष रक्षाबंधन से एक दिन पहले केदारनाथ मंदिर में अन्नकूट मेला (भतूज) धूमधाम से मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मेले में सर्वप्रथम केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहितों द्वारा भगवान शिव के स्वयंभू लिग की विशेष पूजा-अर्चना की प्रक्रिया संपन्न करने के साथ ही नए अनाज के लेप लगाकर स्वयंभू लिग का श्रृंगार करते हैं। इस दौरान भोले बाबा का श्रृंगार का दृश्य अलौकिक होता है, जिसके बाद प्रतिवर्ष भक्त सुबह चार बजे श्रृंगार किए गए भोले बाबा के स्वयंभू लिग के दर्शन करते हैं, इसके बाद भगवान को लगाए गए अनाज के इस लेप को यहां से हटाकर किसी साफ स्थान पर विसर्जित किया जाता है। मंदिर समिति के कर्मचारी मंदिर की सफाई करने के उपरात ही अगले दिन भगवान की नित्य पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता हैं कि नए अनाज में पाए जाने वाले विष को भोले बाबा स्वयं ग्रहण करते हैं। आपको बता दे कि इस त्योहार को मनाने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है।